Thursday, January 12, 2012

एक प्रयास

यह ब्लॉग स्वामी  विवेकानंद के पवित्र शक्तिदायी विचार एवं  परिश्रमशील जीवन  को दर्शाने का एक प्रयास है ! हमारा उद्देश्य स्वामी जी के द्वारा दिए गये जनहित योग्य संदेशों को युवाओ तक पहुचना है और "विश्वास एवं  शक्ति", "प्रेम एवं नि:स्वर्थाकता", ईश्वर और धर्म" जैसी सत्यता भरे विचारो को युवाओ तक पहुचने का एक प्रयास है!
आज की परिस्थिति में स्वामी विवेकानंद की शिक्षाये तथा उनका सन्देश हमारे लिए कितना मूल्यवान है, इसे आंकना सहज नही! हमारे राष्ट्रीय जीवन को ऐसा कोई पहलु नही,ऐसी कोई समस्या नही जिसका हल हमे जिसका फल हमे उनकी शिक्षाओं में नही मिल जाता हो !उनकी तेजस्वी वाणी हमारे देश के युवाओ में संजीवनी का संचार करेगी !


      स्वामी विवेकानंद जी की वाणी       
  • जब तुम स्वयं अपने में विस्वास नही करते ,परमात्मा में तुम विश्वास नही कर सकते !
  • केवल सत्कार्य करते रहो ,सर्वदा पवित्र चिंतन करो; असत संस्कार रोकने का बस यही एक उपाय है !
  • सत्य के लिए सब कुछ त्यागा जा सकता है, पर सत्य का किसी भी चीज़ के लिए छोड़ा नही जा सकता,उसकी बलि नहीं दी जा सकती!सभी प्राणियों के प्रति करुना रखो !जो दुःख में है उन पर दया करो; सब प्राणियों से प्रेम करो, किसी से इर्ष्य मत करो, दुसरो के दोष मत देखो !
  • अच्छे आदमी सब विधि विधानों से ऊपर उठाते है ,और वे ही अपने लोगों को - चाहे वो किन परिस्थितियों में क्यों हो - ऊपर उठाने में मदद करते है !
  • मेरी आशा मेरा विश्वाश नई पीढ़ी के युवाओ पर है !केवल मनुष्यों की आवश्यकता है और सब कुछ हो जायेगा किन्तु आवश्यकता है वीर्यवान, तेजश्वी, श्रधासम्प्पन और अंत तक कपट रहित युवाओ की ! इस  प्रकार के सौ युवाओ से  संसार के सभी भाव बदल दिए जा सकते है !
  • अपने हांथो अपना भविष्य गद डालो ,सारा भविष्य तुम्हारे सामने पड़ा है !
  • पीछे की ओर देखने की आवश्यकता नही है - आगे बढ़ो ! हमें अनंत शक्ति ,अनंत उत्साह अनंत सहस ,अनंत धैर्य चाहिए, तभी महँ कार्य सम्प्पन होगा !
  • उदास रहना कदापि धर्मं नही है,चाहे वह और कुछ भले ही हो ! प्रफुल्लचित्त तथा हस मुख रहने से तुम इश्वर के अधिक समीप पहुच जाओगे !
  • भय ही म्रत्यु है!भय से पार हो जाना चाहिए ,आज नसे ही भय शुन्य हो जाओ !
  • यदि आप नमक कोई वास्तु है तो यह कहना ही एक मात्र पाप है कि मै दुर्बल हूँ .अथवा अन्य कोई दुर्बल है !
  • यह एक बड़ा सत्य है की बल ही जीवन है  और दुर्बलता ही मरण !बल ही अनंत सुख है ,चिरानंत और शास्वत जीवन है ,और दुर्बलता ही म्रत्यु !
  • जिसमे आत्मविश्वास नही है वही नास्तिक है ! प्राचीन धर्मो में कहा गया है ,जो इश्वर में विश्वास नही रखता वह नास्तिक है ,परन्तु नूतन धर्म कहता है जो आत्मविश्वास नही रखता वह नास्तिक है !
  • निंदावाद को एक दम छोड़ दो ! तुम्हारा मुह बंद हो और ह्रदय खुल जाये ! इस देश ओर सरे जगत का उद्दार हो ! तुम लोगों में प्रत्येक को यह सोचना होगा की सारा भार तुम्हारे ही ऊपर है !वेदांत का आलोक् घर घर ले जाओ ,घर घर में वेदांत का आदर्श पर जीवन गठित हो ,प्रत्येक जीवात्मा में जो इश्वर अन्तर्निहित है, उसे जगाओ !

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